रोज गूँथती हूँ मैं कितने ही पहाड़ आटे की तरह बिलो देती हूँ जीवन की मुश्किलें दूध-दही की तरह बेल देती हूँ रोज ही आकाश सी गोल रोटी प्यार की बारिश में मैं सब कुछ कर सकती हूँ सिर्फ तुम्हारे लिए।
हिंदी समय में मनीषा जैन की रचनाएँ